गर्मी में देखो सखी, तरणताल का जोश।
लोहा लेने धूप से, खोला राहत-कोश।
खोला राहत-कोश, जानता है यह ज्ञानी
जल निगले जब काल, उसे बनना है दानी।
कितना सखी उदार, ताल यह सेवाकर्मी
बनकर शीत फुहार, हर रहा जन की गर्मी।
जब-जब आकर भूमि पर, गर्मी करे विहार
मित्रों तब उसका करें, मनचाहा सत्कार
मनचाहा सत्कार, सुराही जल भर लाएँ
फल सलाद के साथ, दही का पात्र सजाएँ
जो माँगे तर खाद्य, परोसें सारे जी भर
गर्मी करे विहार, भूमि पर जब-जब आकर
उद्यत होता सूर्य जब, तड़पाने मन-प्राण
न्यौता देते तब हमें, सुबह-शाम उद्यान
सुबह-शाम उद्यान, सौंपकर खुशबू-छाया
सहज सुखाते स्वेद, अजब कुदरत की माया
फूलों का परिवार, हमारा सौख्य सँजोता
तड़पाने मन-प्राण, सूर्य जब उद्यत होता
दिनकर के सखि देखकर, अतिशय गरम मिजाज
हमें बुलाते दूर से, दे पहाड़ आवाज़
दे पहाड़ आवाज़, प्रकृति का लुत्फ उठाने
चल पड़ते हैं पाँव, भ्रमण पर इसी बहाने
पर्वत शीतल-स्नेह हमें देते तब जी भर
जब-जब गरम-मिजाज सखी होता है दिनकर
-कल्पना रामानी
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