विजया दशमी पर्व का, अर्थ बहुत है गूढ।
रावण के पुतले जला, खुश है मानव मूढ़।
खुश है मानव मूढ़, मगर क्या हक है उसको
क्या वह उससे श्रेष्ठ, जलाना चाहे जिसको?
जिस दिन होंगे ख़ाक, देश से क्रूर कुकर्मी
उस दिन होगी मीत, वास्तविक विजया दशमी।
कई दशानन देश में, पनप रहे हैं आज।
बालाएँ भयभीत हैं, फैला चौपट राज।
फैला चौपट राज, बसी अंधेर नगरिया
पनघट नहीं सुरक्ष, किस तरह भरें गगरिया।
दीवारों में कैद, हो गए घर के आँगन
पनप रहे हैं आज, देश में कई दशानन।
मन के जाले साफ कर, धो डालें
हर दोष
अंतर का रावण जला, करें विजय उद्घोष। करें विजय उद्घोष, स्वार्थ की लंका तोड़ें
यत्र, तत्र, सर्वत्र, राज्य खुशियों का जोड़ें।
दीप प्रेम के बाल, दिलों में करें उजाले,
धो डालें हर दोष, साफ कर मन के जाले।
लंका गुपचुप स्वार्थ की, बाँध रहे बहु लोग।
रखा काल को कैद में, भोगें छप्प्न भोग। भोगें छप्पन भोग, ह्रदय में पाप समाया
रचा राम का स्वाँग, धनुष पर बाण चढ़ाया।
पाकर खोटे वोट, बजाते इत-उत डंका
बाँध रहे बहु लोग, स्वार्थ की गुपचुप लंका।
रावण ही बदनाम क्यों, मानव, मन से जान।
आज सुपथ को त्यागकर, भटका हर इंसान।
भटका हर इंसान, अराजकता है फैली
हावी है आतंक, हो चुकी हवा विषैली।
रक्त सना है आज, देश का सारा प्रांगण
क्यों है फिर बदनाम, ‘कल्पना’ केवल रावण।
4 comments:
दी लाजवाब कुण्डलिया
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [14.10.2013]
चर्चामंच 1398 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!
bahut hee sundar samyik aur manan karne yogy!
विजयादशमी की अनंत शुभकामनाएं
बहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है-
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in
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