ख्यात
हुए तो क्या हुआ, अगर हुए कुख्यात।
धर्मों को देते रहे, दुष्कर्मों से
मात।
दुष्कर्मों से मात, नतीजा कभी न सोचा
अपना ही हर सौख्य, देख जन-जन को नोचा
कहनी इतनी बात, कि जिस पथ पाँव धरे हो
धिक्कृत
होंगे आप, क्या
हुआ ख्यात हुए तो।
बुरे
न होते लोग सब, जो होते कुख्यात।
कर
देते बेबस इन्हें, नामी औ’ विख्यात।
नामी
औ’ विख्यात, छीन लेते हक
इनके।
बदले
की ये आग, बुझाते
बेघर बनके।
मिलता
है धिक्कार, प्रताड़ित सबसे होते
लेकिन
ये कुख्यात, लोग सब बुरे
न होते।
महँगाई
से त्रस्त जन, नेता चाहें भोग।
टांग
खिंचाई में लगे, सत्ताधारी लोग।
सत्ताधारी
लोग, मुखौटे
रोज़ बदलते
सधे
जहाँ पर स्वार्थ, उसी रस्ते पर
चलते।
हों
चाहे कुख्यात, ख्याति यह उनको भाई
नेता
चाहें भोग, डसे जन को महँगाई।
-कल्पना रामानी
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